कुछ पल के इंतज़ार में,
कुछ पल गुज़र जायेंगे,
कुछ भी कहे बिना,
हम यूँ नहीं जायेंगे...
तुमसे कुछ तो कहा था,
कुछ और भी कहना बाकी है,
कुछ कुछ केहते-केहते,
कुछ और ही कह जायेंगे...
सदियों से चला आ रहा,
यह कुछ कुछ का है सिलसिला ,
कभी कुछ कुछ कह कर भी,
कुछ कुछ नही कह पाएंगे...
यूँ ही कुछ कुछ केहते केहते,
हम कुछ भूल भी तो जायेंगे,
कुछ कुछ कहने के इंतज़ार में,
कुछ याद नही रख पाएंगे...
इस कुछ कुछ के सिलसिले में
तुम याद हमेशा आओगे,
यूँ ही कुछ कुछ कह कर ही,
तुमको अपना बनायेंगे ...
4 comments:
Wah Wah !
Keep it up !
Sahi hai yaar.
I dint know ki tum itna achha likhti ho.
beautiful poem!!
nice 1..........
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